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तुम्हें कितनी मोहब्बत हैं,
मालूम नहीं......
मगर मुझे लोग आज भी,
तेरी क़सम देके मना लेते हैं...!!!
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हमारे घरसे जाना
मुस्कुराकर,
फिर ये फ़रमाना...
तुम्हें
मेरी क़सम,
देखो मिरी रफ़्तार
कैसी हैं...
हसन बरेलवी
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ज़र्रा ज़र्रा कायनातका,
वाकिफ़
था, उसके ख्यालातोसे...
बस इक़ हमे खबर होती तो,
क़समसे क्या बात थी.......
बस इक़ हमे खबर होती तो,
क़समसे क्या बात थी.......
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खफ़ा भी हो
तो,
मुंह मोड़कर नहीं जाना;
तुझे क़सम हैं,
मुझे छोड़क़र नहीं जाना...
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हम भी क्या,
गजबके पागल थे...
उसकी झूठी क़समोके लिए,
अपने कीमती दिल हार
बैठे.......