15 October 2020

6636 - 6640 प्यार हकीकत दीदार लम्हा रूह सैलाब शौक ख़्वाब शायरी

 

6636
तेरा मिलना,
मेरे लिए ख़्वाब सहीं...
पर तुझे भूलूँ मैं,
ऐसा कोई लम्हा मेरे पास नहीं...!

6637
सैलाबके सैलाब गुजर जाते हैं,
गिरदाबके गिरदाब गुजर जाते हैं,
आलमे-हवादिससे परीशाँ क्यों हो...
यह ख़्वाब हैं और ख़्वाब गुजर जाते हैं...
अब्दुल हमीद अदम

6638
सुनता हूँ बड़े शौकसे,
अफसाना--हस्ती...
कुछ ख़्वाब हैं कुछ अस्ल हैं,
कुछ तर्जे-अदा हैं.......
                          असगर गौण्डवी

6639
कुछ हसीं ख़्वाब,
और कुछ आँसू;
उम्र भरकी मेरी,
यही कमाई हैं ll
मजहर इमाम

6640
ख़्वाब तो वो हैं जिसका,
हकीकतमें भी दीदार हो...
कोई मिले तो इस कदर मिले,
जिसे मुझसे ही नहीं,
मेरी रूहसे भी प्यार हो.......!

14 October 2020

6631 - 6635 याद महक लहजा आँखे नींद शायरी

 

6631
नींद मिट्टीकी महक,
सब्ज़ेकी ठंडक...
मुझको अपना घर,
बहुत याद रहा हैं...
                अब्दुल अहद साज़

6632
सो जाता हैं फ़ुटपाठपें,
अख़बार बिछाकर...
मज़दूर कभी नींदकी,
गोली नहीं खाता...
मुनव्वर राना

6633
नींदकी गोलियाँ खाकर,
सोता हैं ये शहर...
शायद इसलिए इसकी आँखे,
ज़रा देरसे खुलती हैं.......

6634
जाते हुए नोटोंने,
नरम लहजेसे कहा, ज़नाब...
नींद देते भी हम हैं,
नींद लेते भी हम हैं.......

6635
आई होगी किसीको,
हिज्रमें मौत...
मुझको तो,
नींद भी नहीं आती.......
            अकबर इलाहाबादी

13 October 2020

6626 - 6630 दिल इश्क़ मोहब्बत दर्द ग़म याद आदत राह ज़माना नींद शायरी

 
6626
राह यूँ ही नामुकम्मल,
ग़म--इश्क़का फ़साना...
कभी मुझको नींद नहीं आयी,
कभी सो गया ज़माना.......

6627
रातोंके बाज़ारमें,
दुकान लगा रखी हैं यादोंने;
नींदका सारा,
कारोबार चौपट हैं.......!

6628
उतर जाती हैं जो जहनमें,
तो फिर जल्दी नींद नहीं आती...
ये कॉफ़ी और तुम्हारी यादें,
एक जैसी हैं.......

6629
वह एक तुम,
तुम्हें फूलोंपें भी न आई नींद !
वह एक मैं,
मुझे कांटोंपें भी इज्तिराब न था !!!
नैयर अकबराबाजदी

6630
उसको भी हमसे, मोहब्बत हो ज़रूरी तो नहीं...
इश्क़ही इश्क़की क़ीमत हो, ज़रूरी तो नहीं...
नींद तो दर्दके बिस्तरपें भी सकती हैं,
उनके आगोशमें सर हो ये ज़रूरी तो नहीं...
मुस्कुरानेसे भी होता हैं, ग़में-दिल बयाँ...
मुझे रोनेकी आदत हो, ये ज़रूरी तो नहीं...

12 October 2020

6621 - 6625 अश्क नाम पलक आख याद नींद शायरी

 
6621
उफ़फ़फ़,
तेरी यादोंकी बदमाशी...
नींदको,
आखोंतक आने नहीं देती...

6622
अब भी आती हैं तिरी,
यादपर इस कर्बके साथ...
टूटती नींदमें जैसे,
कोई सपना देखा...
अख़तर इमाम रिज़वी

6623
दोनों आखोंमे अश्क दिया करते हैं,
हम अपनी नींद तेरे नाम किया करते हैं;
जब भी पलक झपके तुम्हारी समझ लेना,
हम तुम्हे याद किया करते हैं...!

6624
भरी रहें अभी आँखोंमें,
उसके नामकी नींद...
वो ख़्वाब हैं तो,
यूँही देखनेसे गुज़रेगा.......

6625
नींदको तो मना लेंगे,
मगर...
तेरे इन ख़्वाबोंको,
सुलायेगा कौन.......!

11 October 2020

6616 - 6620 कहानी रोना मयस्सर नींद शायरी

 
6616
कितना आसान था,
बचपनमें सुलाना हमको...
नींद जाती थी,
परियोंकी कहानी सुनकर...
                          भारत भूषण पन्त

6617
मुद्दतों बअद,
मयस्सर हुआ माँका आँचल..
मुद्दतों बअद हमें,
नींद सुहानी आई.......
इक़बाल अशहर

6618
मत सोना कभी,
किसीके कन्धे परसर रखकर...
जब ये बिछडते हैं तो,
रेशमके तकियेपरभी नींद नहीं आती.......

6619
पेड़को नींद नहीं आती,
जबतक आख़री चिड़िया,
घर नहीं आती.......!

6620
मैं रोना चाहता हूँ,
ख़ूब रोना चाहता हूँ मैं...
फिर उसके बाद गहरी नींद,
सोना चाहता हूँ मैं.......
                         फ़रहत एहसास

10 October 2020

6611 - 6615 याद वक़्त ग़म दर्द बेताब जुदाई करवट क़सम नींद शायरी

 

6611
मैने करवट,
बदलके देखा हैं...
याद तो,
उस तरफ भी आती हैं.......!


6612
बेताब मैं ही नही,
दर्द-ए-जुदाईकी क़सम;
रोते तुम भी होंगे,
करवट बदल बदलकर.......
 
6613
सोचता रहा ये रातभर,
करवट बदल बदलकर...
जानें वो क्यों बदल गया,
मुझको इतना बदलकर...

6614
शाम-ए-ग़म,
करवट बदलताही नहीं...
वक़्त भी ख़ुद्दार हैं,
तेरे बग़ैर.......

6615
दो गजसे ज़रा ज़्यादा,
जगह देना कब्रमें मुझे...
किसीकी यादमें करवट बदले बिना,
मुझे नींद नहीं आती.......!

9 October 2020

6606 - 6610 प्यार एहसान नफरत दुश्मनी अंजाम याद क़यामत ईमान लिहाज़ क़सम शायरी

 

6606
खातिरसे या लिहाज़से,
मैं मान तो गयी...
झूठी क़समसे,
तेरा ईमान तो गया...

6607
समेट न सकोगे,
जिसे तुम क़यामत तक...
क़सम तुम्हारी,
तुम्हे इतना प्यार करते हैं...!

6608
एक बार भूलसे ही कहाँ होता,
की हम किसी औरके भी हैं;
खुदा क़सम हम,
तेरे सायेसे भी दूर रहते.......

6609
तू याद बहोत आया,
क़समसे, हर शामके बाद...
कभी आग़ाज़से पहले,
कभी अंजामके बाद.......

6610
प्यार, एहसान, नफरत, दुश्मनी,
जो चाहो वो मुझसे करलो...
आपकी क़सम,
वहीं दुगुना मिलेगा.......

8 October 2020

6601 - 6605 दिल नाम ग़म महफ़िल आँख क़सम शायरी

 

6601
सुनो, आँखोंके पास नहीं...
तो सही...
क़समसे दिलके बहोत,
पास हो तुम.......

6602
उसके साथ रहनेकी,
क़सम थी...
अब दूर हैं,
यही क़सक हैं.......

6603
इस डूबते सूरजकी क़सम,
इस दिलपें;
कोई नाम नहीं लिखा,
तेरे नामके बाद.......!

6604
दिल तुड़वाकर देखो,
क़समसे लिखना क्या...
महफ़िलको रुलानाभी,
सीख जाओगे.......!

6605
तुम अपना रंज--ग़म,
अपनी परेशानी मुझे दे दो...
तुम्हें ग़मकी क़सम,
इस दिलकी वीरानी मुझे दे दो...

7 October 2020

6596 - 6600 दिल इंतजार याद ख़्वाब गुनाह अंजाम मुहोब्बत क़सम शायरी

 

6596
अगर पता होता कि,
इतना तड़पाती हैं मुहोब्बत...
तो क़समसे दिल लगानेसे पहले,
हाथ जोड़ लेते.......

6597
जिसे अंजाम तुम समझते हो,
इब्तिदा हैं किसी कहानीकी...
क़सम इस आग और पानीकी,
मौत अच्छी हैं बस जवानीकी...

6598
क़सम शब्द कुछ ऐसे इस्तेमाल होता हैं,
जैसे हर झूठ बस इसीका,
इंतजार करता हैं;
और क़सम खातेही झूठ भी,
सचका तलबगार होता हैं.......

6599
खाये न जागनेकी क़सम,
वो तो क्या करे...
जिसको हर एक ख़्वाब,
अधूरा दिखाई दे.......
कृष्ण बिहारी नूर

6600
अगर तेरे बिना,
जीना आसान होता तो...
क़सम मुहोब्बतकी,
तुझे याद करनाभी गुनाह समझते...

6 October 2020

6591 - 6595 दिल धड़कन लम्हा जिंदगी इश्क जुल्फें आइना क़सम शायरी

 

6591
हाथ टूटे मैंने गर,
छेडी हो जुल्फें आपकी...
आपके सरकी क़सम,
बादेसबा थी मैं न था...!

6592
आइनेमें लगी,
बिंदियोंकी क़सम...
हूँ मैं ज़िंदा अभीतक,
सिर्फ तेरेही लिए सनम...!

6593
मेरे दिलमें,
एक धड़कन तेरी हैं !
उस धड़कनकी क़सम,
तू जिंदगी मेरी हैं...!!!

6594
इश्कका रोग हैं,
जाता नहीं क़समसे...!
गलेमें डालकर,
सारे ताबीज देखे मैंने...!!!

6595
साथ गुज़ारे हुए,
उन लम्होंकी क़सम...
वल्लाह हूरसे भी,
बेहतर हैं मेरी सनम...!

5 October 2020

6586 - 6590 दिल बात साथ वादा जिंदगी जनाजा फ़रेबी रस्म मुश्किल क़सम शायरी

 

6586
हर बातपर,
क़सम खिलाती थी वो...
अब क़सम ना खिलानेकी भी,
क़सम खाई हैं उसने.......!

6587
इस रस्म-ए-क़समको,
मैं क़ही पीछे छोड़ आया हूँ...
हाँ मैं उसका,
फ़रेबी साथ छोड़ आया हूँ.......

6588
मुश्किल हो रहा हैं,
जीना मेरा;
तुझे क़सम हैं मेरी,
दे दे वापस दिल मेरा...

6589
सौ बार समझाया, इस दिलको हमने...
सौ बार दिल टूट गया...
सौ बार उसे, भूलनेकी क़सम खायी हमने...
सौ बार हर क़सम, दिल भूल गया.......

6590
जनाजा उठा हैं,
आज क़समोंका मेरी...
एक कन्धा तो,
तेरे वादोंका भी बनता हैं.......!

4 October 2020

6581 - 6585 जिंदगी जान नाम वादा इरादा अहसास लेहर शरम क़सम शायरी

 

6581
बे-इरादा टकरा गए थे,
लेहरोंसे हम...
समन्दरने क़सम खा ली हैं,
हमे डुबोनेकी.......

6582
वादोंके समंदरमें,
क़सम बनकर आए;
वो क़सम टूटी यूँ के,
डूबाकर चले गए...

6583
वो तेरा शरमाके मुझसे,
यूँ लिपट जाना...
क़समसे हर महीनेमें,
सावनसा अहसास देता था...!
 
6584
देखते हैं अब,
किसकी जान जायेगी...
उसने मेरी और मैने उसकी,
क़सम खाई हैं.......!

6585
हर रोज़ खा जाते थे,
वो क़सम मेरे नामकी...
आज पता चला की,
जिंदगी धीरेधीरे, ख़त्म क्यूँ हो रही हैं...!

3 October 2020

6576 - 6580 दिल तन्हाँ जुदाई बात सितम सपना महफिल मौका तबस्सुम यकीन क़सम शायरी

 

6576
उनकी महफिलमें नसीर,
उनके तबस्सुमकी क़सम;
देखते रह गए हम,
हाथसे जाना दिलका...

6577
काश वो भी आकर हमसे कह दे,
मैं भी तन्हाँ हूँ...
तेरे बिन, तेरी तरह...
तेरी क़सम, तेरे लिए.......

6578
हमको क़सम तुम्हारी,
कुछ यकीन कर...
हम भी उफ़ करेंगे,
चाहे कोई सताले.......

6579
तुम बात करनेका,
मौका तो दो.......
क़समसे रूला देंगे तुम्हें,
तुम्हारेही सितम गिनाते गिनाते...

6580
वही सर्द रातें, वही फिर जुदाई...
सूना समां, और घेरे तन्हाई...
क़सम हैं तुम्हें, आज फिर ना कहना...
सपनोंमें मेरे तुम देना दिखाई.......

2 October 2020

6571 - 6575 दिल जाम मयकदा महफिल आँख अश्क एतिबार हिचकी हसरत क़सम शायरी

 

6571
कौन हैं जिसने मय नहीं चक्खी,
कौन झूठी क़सम उठाता हैं;
मयकदेसे जो बच निकलता हैं,
तेरी आँखोंमें डूब जाता हैं.......!
                                     मिर्ज़ा ग़ालिब

6572
बाद-ए-तौबा के भी हैं,
दिलमें यह हसरत बाक़ी...
क़सम देके कोई एक,
जाम पीला दे हमको...

6573
तूने क़सम,
मय-कशीकी खाई हैं, ग़ालिब !
तेरी क़समका कुछ,
एतिबार नही हैं.......!
                                 मिर्ज़ा ग़ालिब

6574
उसने सारी क़समेही,
मेरी झूठी खायी...
इसी लिए तो हिचकी,
मुझे रुक रुक कर आयी...!

6575
तेरी महफ़िल सजानेकी,
क़सम खाके बैठें हैं...
इसलिए अश्कोंको,
छुपाके बैठें हैं.......!
                     कृष्ण बिहारी नूर

1 October 2020

6566 - 6570 मोहब्बत इंतज़ार जान मौत जिंदा बेपनाह परवाह जिस्म रूह क़सम शायरी

 

6566
मौत बख्शी हैं जिसने,
उस मोहब्बतकी क़सम...
अबभी करता हूँ इंतज़ार,
बैठकर मजारमें.......

6567
कई झूठ बोले तुमने,
मेरीही क़सम खाकर;
मौतभी खूबसूरत बख्शी,
मेरे करीब आकर...

6568
कसमभी क्या क़सम थी...
मेरे मरनेके बादभी, जिंदा थी...!

6569
बेपनाह मोहब्बत करनेके बादभी.
सपने कहीं वादीयोमें डुब गये l
जहा उसने साथ चलनेकी क़सम खाई थी,
शायद बेपरवाह हमही थे l
जिस्मकी जगह हमने रूहको,
जान लगाई थी ll

6570
क़सम उसने कुछ,
ऐसी खाई मेरे लिए...
अपनी जानतक,
गवाँई उसने.......

30 September 2020

6561 - 6565 दिल मोहब्बत जिंदगी याद चाँद आफ़ताब लाजवाब मुश्किल क़सम शायरी

 

6561
ज़हर मिलताही नहीं,
मुझको गर वरना...
क्या क़सम हैं तेरे मिलनेकी,
कि खा भी सकूँ.......
                                     साहिर

6562
मोहब्बतकी क़सम,
वो ऐसी नहीं थी...
वो मेरी थी मगर,
कहती नहीं थी.......

6563
बना लो उसे अपना,
जो दिलसे तुम्हे चाहता हैं l
खुदाकी क़सम ये चाहने वाले,
बड़ी मुश्किलसे मिलते हैं ll

6564
तुझे जिंदगीभर याद रखनेकी,
क़सम तो नहीं ली;
पर एक पलके लिए तुझे,
भुल जाना भी मुश्किल हैं...

6565
चौदहवींका चाँद हो,
या आफ़ताब हो...!
जो भी हो तुम, खुदाकी क़सम,
लाजवाब हो.......!!!

29 September 2020

6556 - 6560 दिल बेइन्तहा मोहब्बत तस्सली याद ज़िंदा बात क़सम शायरी

 

6556
ये तो बस दिलको,
तस्सली देने वाली बात हैं...
वरना झूठी क़सम खानेसे,
कोई मर नहीं जाता.......!

6557
अगर क़सम खानेसे,
कुछ होता.......
तो सबसे पहेले,
भगवानको कुछ होता...!

6558
सुना था क़सम झूठी हो तो,
लोग मर जाते हैं...
ना जाने कौनसी क़सम निभा रहा हैं वो के,
अब तक ज़िंदा हूँ मैं.......!

6559
अगर क़समें इतनीही,
सच होती;
तो कोई क़समही,
नहीं खाता ll

6560
मेरी क़सम खाया करो,
जब तोड़ना ही हैं...
मुझे जीना हैं अपनोंके लिए,
जो मुझे तुमसे भी,
बेइन्तहा मोहब्बत करते हैं...!

6551 - 6555 साथ वादा ज़िंदा राह पलकें आँख़ें क़सम शायरी

 

6551
आजा आज फिर कुछ,
क़समे जोड़ी जाए...
और नयी सीमाएँ,
लांघी जाए.......!

6552
ज़रूरी नहीं साथ रहनेकी ही,
क़सम निभाई जाये...
ज़िंदा रखनेका वादा भी तो,
किया था उसने.......!

6553
तुझसे ना मिलनेकी,
क़सम खाकर...
हर राहमें तुझे,
ढूँढा बहुत हैं.......

6554
तू कहीं भी हो,
तेरे फूलसे आरिज़की क़सम,
तेरी पलकें मेरी आंखों,
झुकी रहती हैं.......
साहिर

6555
फिर उसी राहपें,
निकल पड़े हैं...
कल जहाँ ना जानेकी,
क़सम खा बैठे थे.......