9201
रंग़ीनिए हयात,
बढ़ानेक़े वास्ते...
पड़ती हैं हादसोंक़ी,
ज़रूरत क़भी-क़भी.......!
9202ये मंसब-ए-बुलंद मिला,ज़िसक़ो मिल ग़या...हर मुद्दईक़े वास्ते,दार-ओ-रसन क़हाँ.......मोहम्मद अली ख़ाँ रश्क़ी
9203
आने लगे हैं वो भी,
अयादतक़े वास्ते...
ऐ चाराग़र मरीज़क़ो,
अच्छा क़िया न ज़ाए.......!!!
हमीद ज़ालंधरी
9204क़ाम क़ुछ तो क़ीज़िए,अपनी बक़ाक़े वास्ते...इंक़िलाबी नामसे तो,इंक़लाब आता नहीं...अहया भोज़पुरी
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जाँ-सिपारी, दाग़ क़त्था चूना हैं,
चश्म-ए-इन्तिज़ार वास्ते !
मेहमान ग़मक़े दिल हैं,
बीड़ा पानक़ा.......!!!
सिराज़ औरंग़ाबादी