1791
इतनी तो नजर अंजान न थी,
ऐसे न कभी बेगाने थे;
मुह फेरके जाते हैं हमसे,
जो पहले हमारे दिवाने थे ...
1792
सब कुछ हैं पास लेकिन कुछ भी नहीं रहा,
उसकी ही जुस्तजू थी वो ही नहीं रहा,
कहता था इक पल न रहूँगा तेरे बगैर...
हम दोनों रह गए, वो वादा नहीं रहा !
1793
शाम होते ही,
चिरागोंको बुझा देता हुँ ...
मेरा दिल ही काफी हैं,
तेरी यादमें जलनेके लिए ...
1794
अजीब था उनका अलविदा कहना,
सुना कुछ नहीं और कहा भी कुछ नहीं,
बर्बाद हुवे उनकी मोहब्बतमें,
की लुटा कुछ नहीं और बचा भी कुछ नहीं...!
1795
सुनो ...
कभी फुर्सत मिले,
तो याद कर लेना...
हम तो एक हिचकीसे भी,
खुश हो जायेंगे !!!