29 August 2022

9056 - 9060 रूह मंज़िल ज़िंदग़ी फ़ना मंज़िल ग़ुलिस्ताँ राह शायरी

 

9056
मैं उनपर चलक़े भी,
क़्यों मंज़िलोंक़ा हो नहीं पाया...
ज़ो राहें ज़िंदग़ीक़े,
पेंच--ख़ममें रक़्स क़रती हैं...
                                    नवेद क़्यानी

9057
फ़नाक़ी मंज़िलोंपर,
ख़त्म हैं राहें अनासिरक़ी...
यहीं अब देख़ना हैं,
रूह ज़ाती हैं क़हाँ मेरी.......
हीरा लाल फ़लक़ देहलवी

9058
क़ोई मंज़िल तो नहीं,
राहें मग़र हैं शाहिद...
ख़ुदक़ो पानेक़े लिए,
क़ितना चला हूँ मैं भी...
               सय्यद नदीम क़माल

9059
क़िन मंज़िलोंक़ी ताक़में,
ये क़ारवान--ज़ीस्त...
राहें नई नई हैं,
ग़ुलिस्ताँ नए नए.......!
क़ाज़ी मुस्तक़ीमुद्दीन सहर

9060
राहें धुएँसे भर ग़ईं,
मैं मुंतज़िर रहा...
क़रनोंक़े रुख़ झुलस ग़ए,
मैं ढूँढता फ़िरा.......
                     मज़ीद अमज़द

28 August 2022

9051 - 9055 उम्र हंग़ामा तमाशा तन्हा अँधियारे ज़ख़्म राह शायरी


9051
उम्रभर देख़ा क़िए,
मरनेक़ी राह...
मर ग़ए पर देख़िए,
दिख़लाएँ क़्या.......
                   मिर्ज़ा ग़ालिब

9052
हंग़ामा--हयातसे,
लेना तो क़ुछ नहीं...
हाँ देख़ते चलो क़ि,
तमाशा हैं राहक़ा...
नातिक़ ग़ुलावठी

9053
वो अंधी राहमें,
बीनाइयाँ बिछाता रहा...
बदनपें ज़ख़्म लिए और,
लबोंपें दीन लिए.......
                   नुसरत ग़्वालियारी

9054
अँधियारेक़ी सारी राहें,
भेदोंक़े जंग़लक़ी,
ज़ानिब ज़ाती हैं ll
सलीमुर्रहमान

9055
क़ितनी तन्हा थीं,
अक़्लक़ी राहें...
क़ोई भी था न,
चारा-ग़रक़े सिवा...
             सूफ़ी तबस्सुम

26 August 2022

9046 - 9050 मंज़िल दुनिया फ़ैसला वास्ते राह शायरी

 

9046
मंज़िलें सम्तें बदलती ज़ा रही हैं,
रोज़ शब...
इस भरी दुनियामें हैं,
इंसान तन्हा राह-रौ.......
                                फ़ुज़ैल ज़ाफ़री

9047
क़िसीक़े वास्ते,
राहें क़हाँ बदलती हैं...
तुम अपने आपक़ो,
ख़ुद ही बदल सक़ो तो चलो...!
निदा फ़ाज़ली

9048
चलो ज़ो भी हुआ,
हम मानक़े राहें बदलते हैं...
मुझे अब फ़ैसलोंमें,
क़ोई दुश्वारी नहीं आती...!!!
                               राबिआ बसरी

9049
बहुत आसान,
हो सक़ती थीं राहें...
हमें चलना,
ग़वारा ही नहीं था...
मुनीर अनवर

9050
राह बड़ी सीघी हैं !
मोड़ तो सारे मनक़े हैं...!

9041 - 9045 दस्तूर नाक़ाम ज़िस्म होंठ उल्फ़त राह शायरी

 

9041
देख़े हैं दस्तूर निराले हमने,
वादी--उल्फ़तमें...
राहें ज़ब आसान हुईं तो,
सई--तलब नाक़ाम हुई.......
                          ऋषि पटियालवी

9042
राह--तलबमें,
दाम--दिरम छोड़ ज़ाएँग़े,
लिख़ लो हमारे शेर...
बड़े क़ाम आएँग़े.......!!!
ज़ुनैद अख़्तर

9043
राह तक़ते ज़िस्मक़ी,
मज्लिसमें सदियाँ हो ग़ईं...
झाँक़क़र अंधे क़ुएँमें,
अब तो क़ोई बोल दे.......
                       आफ़ताब शम्सी

9044
राहमें मिलिए क़भी मुझसे,
तो अज़-राह--सितम...
होंठ अपना क़ाटक़र,
फ़ौरन ज़ुदा हो ज़ाइए...
हसरत मोहानी

9045
राहें चमक़ उट्ठेंग़ी,
ख़ुर्शीदक़ी मशअलसे...
हमराह सबा होग़ी,
ख़ुश्बू--सहर लेक़र.......
             अली सरदार ज़ाफ़री

24 August 2022

9036 - 9040 तलाश मंज़ूर आसान आसाँ विरासत अक़्ल ज़िंदग़ी तक़दीर क़फ़स राह शायरी

 

9036
उसक़ो मंज़ूर नहीं हैं,
मिरी ग़ुमराही भी...
और मुझे राहपें लाना भी,
नहीं चाहता हैं.......
                    इरफ़ान सिद्दीक़ी

9037
तोड़क़र निक़ले क़फ़स,
तो ग़ुम थी राह--आशियाँ l
वो अमल तदबीरक़ा था,
ये अमल तक़दीरक़ा ll
हेंसन रेहानी

9038
बहुत आसान राहें भी,
बहुत आसाँ नहीं होतीं...
सभी रस्तोंमें थोड़ी ग़ुमरही,
मौज़ूद रहती हैं.......
                         इस्लाम उज़्मा

9039
तिरी अक़्ल ग़ुम तुझे क़र दे,
रह--ज़िंदग़ीमें सँभलक़े चल...
तू ग़ुमाँ क़ी हद तलाश क़र,
क़ि क़हीं भी हद्द--ग़ुमाँ नहीं...
महफ़ूज़ुर्रहमान आदिल

9040
रंज़ यूँ राह--मसाफ़तमें मिले,
क़ुछ क़माए क़ुछ विरासतमें मिले ll
                                          नवीन ज़ोशी

23 August 2022

9031 - 9035 क़यामत सुख़न फ़ासला शिक़वा उम्मीद राह शायरी

 

9031
राह--मज़मून--ताज़ा बंद नहीं,
ता क़यामत ख़ुला हैं बाब--सुख़न ll
                              वली मोहम्मद वली

9032
देरतक़ मिलक़े,
रोते रहे राहमें...
उनसे बढ़ता हुआ,
फ़ासला और मैं.......
ताबिश मेहदी

9033
अभीसे शिक़वा--पस्त--बुलंद हम-सफ़रो,
अभी तो राह बहुत साफ़ हैं अभी क़्या हैं ll
                                                 रईस अमरोहवी

9034
ही ज़ाता,
वो राहपर ग़ालिब...
क़ोई दिन और भी,
ज़िए होते.......
मिर्ज़ा ग़ालिब

9035
ग़ो उन्हें राह--इंहिराफ़ नहीं,
फ़िर भी उम्मीद--'तिराफ़ नहीं...
                          ज़ियाउद्दीन अहमद शक़ेब

22 August 2022

9026 - 9030 ख़िलाफ़ ग़ुमराह मंज़िल रास्ता राह शायरी

 

9026
ये राह--तलब यारो,
ग़ुमराह भी क़रती हैं...
सामान उसीक़ा था,
ज़ो बे-सर--सामाँ था...
                       अतीक़ुल्लाह

9027
तूने ही राह दिख़ाई,
तो दिख़ाएग़ा क़ौन...
हम तिरी राहमें,
ग़ुमराह हुए बैठे हैं...!!!
ज़ितेन्द्र मोहन सिन्हा रहबर

9028
ग़ुमराह क़ब क़िया हैं,
क़िसी राहने मुझे...
चलने लग़ा हूँ,
आप ही अपने ख़िलाफ़में...
                     अफ़ज़ल गौहर राव

9029
मंज़िलोंसे ग़ुमराह भी,
क़र देते हैं क़ुछ लोग़...
हर क़िसीसे रास्ता पूछना,
अच्छा नहीं होता.......

9030
मंज़िल तो मिल ही ज़ाएग़ी,
भटक़क़र ही सहीं...
ग़ुमराह तो वो हैं ग़ालीब,
ज़ो घरसे निक़ले ही नहीं.......!

21 August 2022

9021 - 9025 घड़ी डर ख़ाक़ सुलूक़ शान पुक़ार राह शायरी

 

9021
क़्या हो ग़र क़ोई घड़ीयाँ भी,
क़रम फ़रमाओ...
आप इस राहसे,
आख़िर तो ग़ुज़र क़रते हैं...
                        मीर मोहम्मदी बेदार

9022
वो राहें ज़िनसे अभी तक़,
नहीं ग़ुज़र मेरा...
लग़ा हुआ हैं,
इन्हीं रास्तोंक़ो डर मेरा...
मुस्लिम सलीम

9023
सुलूक़ और मारिफ़तक़ी,
राहें ख़ुली हैं शौक़त...
सो मैं शरीअतक़े,
मरहलेसे ग़ुज़र रहा हूँ...
                        शौक़त हाशमी

9024
इस राहसे ग़ुज़रे थे,
क़भी अहल--नज़र भी..
इस ख़ाक़क़ो चेहरेपें मिलो,
आँख़में डालो.......
शहज़ाद अहमद

9025
क़िस शानसे चला हैं,
मिरा शहसवार--हुस्न...
फ़ित्ने पुक़ारते हैं,
ज़रा हटक़े राहसे.......
                    ज़लील मानिक़पूरी

9016 - 9020 राहग़ीर शुक़्र बुलंद मोहब्बत सुहूलत राह शायरी

 

9016
मुझसे भी राहग़ीरसे भी,
राह यारक़ो...
यक़साँ हैं दोनों पाँवतले,
ख़ैर--शर क़ी राह.......
                      इमदाद अली बहर

9017
शैख़ साहबसे,
रस्म--राह क़ी ;
शुक़्र हैं ज़िंदग़ी,
तबाह क़ी ll
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

9018
हर बुलंदीसे,
बनें राहें नई...
हौसले क़ुछ,
आसमानी दे मुझे...
               मोनिक़ा सिंह

9019
बड़े ताबाँ बड़े रौशन,
सितारे टूट ज़ाते हैं l
सहरक़ी राह तक़ना,
ता सहर आसाँ नहीं होता ll
अदा ज़ाफ़री

9020
सराब अफ़्शाँ तवील राहें,
मोहब्बतोंक़ो बुला रही हैं...
उन्हें पता हैं क़ि हैं मोहब्बतमें ही,
सुहूलतक़ा इक़ सितारा.......
                                    रुची दरोलिया

19 August 2022

9011 - 9015 ख़ाक़ आँख़ अज़नबी मुसाफ़िर राह रास्ता शायरी

 

9011
ख़ाक़ सरग़र्दां हैं,
हर सू क़ुछ नहीं बदला यहाँ...
देख़ती हैं अब भी राहें,
रास्ता रहग़ीरक़ा.......
                               अलीना इतरत

9012
मुसाफ़िरोंक़ो वो,
राहें दिख़ाएग़ा अफ़ज़ल...
चराग़ रख़ दो,
सर--रहग़ुज़र अँधेरेमें.......
अफ़ज़ल इलाहाबादी

9013
रास्ता रोक़क़े,
क़ह लूँग़ा ज़ो क़हना हैं मुझे ;
क़्या मिलोग़े क़भी,
राहमें आते ज़ाते.......
                           रिन्द लख़नवी

9014
आश्ना राहें भी,
होती ज़ा रही हैं अज़नबी...
इस तरह ज़ाती रही,
आँख़ोंसे बीनाई क़ि बस.......
वामिक़ जौनपुरी

9015
अभी क़हें तो क़िसीक़ो,
एतिबार आवे l
क़ि हमक़ो राहमें,
इक़ आश्ना ने लूट लिया ll
                     नज़ीर अक़बराबादी

9006 - 9010 मंज़िल क़ारवाँ कांटे ज़िन्दग़ी रहज़न शायरी

 

9006
रहबर या तो रहज़न निक़ले या हैं,
अपने आपमें ग़ुम...
क़ाफ़ले वाले क़िससे पूछें,
क़िस मंज़िल तक़ ज़ाना हैं...
                                 अर्श मल्सियानी

9007
बफैज़ै-मस्लेहत,
ऐसा भी होता हैं ज़मानेमें...
क़ि रहज़नक़ो अमीरे-क़ारवाँ,
क़हना हीं पड़ता हैं...
ज़नग़न्नाथ आज़ाद

9008
मतलबपरस्त दुनिया,
बदज़न बना ग़ई हैं...l
रहज़नक़ा अब ग़ुमाँ हैं,
हर अपने हमनशींपर...ll
                       शौक़त थानवी

9009
हमक़ो राहें-ज़िन्दग़ीमें,
इस क़दर रहज़न मिले...
रहनुमापर भी,
ग़ुमानेरहनुमा होता नहीं...
अर्श मल्सियानी

9010
अपने वो रहनुमा हैं क़ि,
मंज़िल तो दरक़नार...
कांटे रहें तलबमें,
बिछाते चले ग़ए.......
                 असर लख़नवी

17 August 2022

9001 - 9005 ज़वानी मक़ाम ख़बर वक़्त उम्र जंग़ल राह शायरी


9001
क़िस तरह ज़वानीमें,
चलूँ राहपें नासेह...
ये उम्र ही ऐसी हैं,
सुझाई नहीं देता.......
           आग़ा शाएर क़ज़लबाश

9002
ज़वानी क़हते हैं, लग़्ज़िश हैं;
लेक़िन मारिफ़त भी हैं;
क़ई राहें निक़लती हैं;
ज़हाँसे वो मक़ाम आया ll
बनो ताहिरा सईद

9003
ज़माना अक़्लक़ो समझा हुआ हैं,
मिशअल--राह...
क़िसे ख़बर क़ि ज़ुनूँ भी हैं,
साहिब--इदराक़.......
                            अल्लामा इक़बाल

9004
रोक़ लेता हैं अबद,
वक़्तक़े उस पारक़ी राह...
दूसरी सम्तसे ज़ाऊँ तो,
अज़ल पड़ता हैं.......
इरफ़ान सत्तार

9005
उस्ताद क़ोई ज़ोर मिला,
क़ैसक़ो शायद...
ली राह ज़ो जंग़लक़ी,
दबिस्ताँसे निक़लक़र.......
             मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी