21 September 2017

1766 - 1770 जिन्दगी प्यारे रिश्ते किताब नाम शक मर्ज बढीयाँ इलाज वक्त दवा ख्वाहिश परहेज शायरी


1766
किताबका नाम यूँ ही,
'मेरी आत्मकथा' रखा हैं,
बाकी इसके हर एक पन्नोंपर,
नाम तो सिर्फ उनका ही लिखा हैं...!

1767
बड़े प्यारे होते हैं न ऐसे रिश्ते.......
जिनपर कोई हक़ भी न हो
और शक भी न हो...!!!

1768
जिन्दगीने मेरे मर्जका,
एक बढीयाँसा इलाज बताया...
वक्तको दवा कहा और,
ख्वाहिशोंका परहेज बताया...!!!

1769
हर एक लकीर,
एक तजुर्बा हैं जनाब,,,
झुर्रियाँ चेहरोंपर,
यूँ ही आया नहीं करती...!

1770
आरामसे कट रही थी,
तो अच्छी थी,
जिंदगी तू कहाँ,
उनकी आँखोंकी बातोंमें आ गयी...!

20 September 2017

1761 - 1765 दिल दीवानगी उधार किश्तें अदा जरुरत हुनर राज रविश तरीका साथ शायरी


1761
मेरी दीवानगीका उधार,
उन्हे चुकानेकी जरुरत नहीं हैं,
मैं उन्हे देखता हूँ और,
किश्तें अदा हो जाती हैं...!

1762
कोई हुनर, कोई राज, कोई रविश,
कोई तो तरीका बताओके.......
दिल टूटे भी ना, साथ छूटे भी ना, कोई रूठे भी ना...
और जिंदगी गुजर जाऐ . . . . . . .

1763
ना दर्दने किसीको सताया होता,
ना आँखोंने किसीको रुलाया होता,
खुशी ही खुशी होती हर जगह अगर...
बनाने वालेने दिल ही न बनाया होता.......

1764
तहजीब सिखादी मुझे,
एक छोटेसे मकानने,
दरवाजेपर लिखा था,
"थोडा झुककर चलिये..."

1765
बड़ी हसरतसे सर पटक पटकके गुजर गई,
कल शाम मेरे शहरसे आँधी ।।
वो पेड़ आज भी मुस्कुरा रहें हैं,
जिन्हें हुनर था थोडा झुक जानेका ।।

19 September 2017

1756 - 1760 दिल मोहब्बत ज़िन्दगी दुश्मन इजाज़त बगैर अजनबी खूबसूरत शायरी


1756
मेरे दुश्मनतक मुझसे,
अब दूर रहने लगे हैं,
कहते हैं... इसने खुदही मोहब्बत कर ली,
इसका अब हम क्या बिगाड़े...!

1757
बस जाते हैं दिलमें,
इजाज़त लिए बगैर,
वो लोग जिन्हें हम,
ज़िन्दगीभर पा नहीं सकते...

1758
आँखे भिगोनी लगी हैं,
अब तुम्हारी बातें.......
काश तुम अजनबी ही रहते,
तो अच्छा होता.......

1759
टपक पडते हैं आँसु,
जब हमे किसीकी याद आती हैं,
ये वो बारिश हैं,
जिसका कोई मौसम नहीं होता...

1760
किसीने कहां आपकी आँखे बहुत खूबसूरत हैं !
मैने कह दिया कि,
बारिशके बाद अक्सर...
मौसम सुहाना हो जाता हैं.......!

18 September 2017

1751 - 1755 इश्क़ ख़्वाबका ख़याल आँख़ लाजिमी सोच तरीके बात लफ़्ज़ लब वार कातिल शायरी


1751
इश्क़में ख़्वाबका ख़याल,
किसे न लगी आँख़...
जबसे आँख़ लगी...!
                मीर मोहम्मद हयात हसरत

1752
लाजिमी नहीं की आपको,
आँख़ोंसे ही देख़ुं...
आपको सोचना आपके,
दीदारसे कम नहीं.......!

1753
इश्क़ न होनेके,
सिर्फ दो तरीके हैं...
या तो दिल न बना होता,
या तुम ना बनी होती !

1754
आँख़ोंकी बात हैं,
आँख़ोंको ही कहने दो,
कुछ लफ़्ज़ लबोंपर,
मैले हो जाते हैं...

1755
वार तो आप किये जा रहीं हैं...
और कातिल हमें कहे जा रहीं हैं...!!!

17 September 2017

1746 - 1750 आसान खुशी गम कलाकार किरदार शायद पसन्द मायुसी चाह रिश्ते शायरी


1746
थक गये हैं गमभी,
अपनी कलाकारी करते करते,
ऐ खुशी तु भी अपना,
किरदार निभा दे जरा...!!!

1747
उसने पुछा के.......
सबसे ज्यादा क्या पसन्द हैं तुम्हे ?
हम बहुत देरतक उसे देखते रहें,
के शायद वो समझ जाये !

1748
आसान ये भी नहीं,
कि तुम किसीके लिये जियो,
और
वो किसी औरके लिये...!!!

1749
मुझे हसरत ही नहीं,
मोहब्बतक़ो पानेक़ी
अब तो चाहत हैं,
मोहब्बतक़ो भूल ज़ानेक़ीll

1750
मायुसीमें अकेला ही,
पाता हूँ खुदको...
इसलिए रिश्तोंसे,
बचाता हूँ खुदको...
अब इन अपनोंसे बहुत दुर,
ले जाना चाहता हूँ खुदको...

16 September 2017

1741 - 1745 दिल मोहब्बत बेफ़िक्री बेपनाह चाहत नतीजा ख़ुमार एहसास मन्ज़िल मक़सद रास्ता शर्त ग़म हिस्सा शायरी


1741
ये जो उनकी बेफ़िक्री हैं,
ये हमारी ही बेपनाह चाहतका नतीजा हैं...

1742
मोहब्बतका ख़ुमार उतरा तो,
ये एहसास हुआ;
जिसे मन्ज़िल समझते थे,
वो तो बे-मक़सद रास्ता निकला...

1743
एक ही शर्तपें बाटूँगा खुशी...
तेरे ग़ममें मेरा हिस्सा होगा...!

1744
सुबह सुबह चले आते हो
आँख खुलते ही खयालोंमें,
लगता हैं बेरोजगार हो तुम भी
मेरे दिलकी तरह !!

1745
सैंकडों आँसू मेरी,
आँखोंकी हिरासतमें थे...
इक उसका नाम क़्या आया और...
इनको ज़मानत मिल गयी...

14 September 2017

1736 - 1740 ज़िंदगी कश्ती तूफान शमा मायुस इरादे किस्मत वक़्त शख्शियत यार चट्टान मुसीबत झरना शायरी


1736
कश्ती तूफानसे निकल सकती हैं,
शमा बुझके भी जल सकती हैं,
मायुस ना हो, इरादे ना बदल ज़िंदगीमें,
किस्मत किसीभी वक़्त बदल सकती हैं !

1737
निखरती हैं मुसीबतोंसे ही,
शख्शियत यारों...
जो चट्टानोसे ही ना उलझे,
वह झरना किस काम का ?

1738
ए खुदा,
तुजसे एक सवाल हैं मेरा…
उसके चहेरे क्यूँ नहीं बदलते ???
जो इन्सान बदल जाते हैं..... !!!

1739
कभी धूप दे, कभी बदलियाँ,
दिलो जानसे दोनों क़ुबूल हैं,
मग़र उस नगरमें ना कैद कर,
जहाँ ज़िन्दगीकी हवा ना हो...

1740
ताल्लुक कौन रखता हैं,
किसी नाकामसे लेकिन.......
मिले जो कामयाबी...
सारे रिश्ते बोल पड़ते हैं...
मेरी खूबीपें रहते हैं यहां,
अहले ज़बान खामोश.......

13 September 2017

1731 - 1735 मोहब्बत इश्क ज़िंदगी प्यार ऐतबार बात वादा जुल्म मुस्कुरा रुला शिकवें शिकायतें शायरी


1731
ज़िंदगीको प्यार हम आपसे ज्यादा नहीं करते,
किसीपें ऐतबार आपसे ज्यादा नहीं करते,
आप जी सके मेरे बिन तो अच्छी बात हैं,
हम जी लेंगे आपके बिन ये वादा नहीं करते।।

1732
मुस्कुरानेसे शुरू और
रुलानेपें खतम...।
ये वो जुल्म हैं... जिसे लोग,
मोहब्बत कहते हैं...

1733
कितना अच्छा होता अगर,
जितनें शिकवें शिकायतें करते हो तुम,
काश...
उतनी मोहब्बत करते हमसे .......!

1734
मेरी चाहतकी, तू आजमाइश ना कर ।
ये इश्क हैं इबादत, तू नुमाइश ना कर।।
रहने दे ये भ्रम, के तू साथ हैं हमेशा।
भूल जाऊँ मैं तुझे, तू फरमाइश ना कर।।

1735
खता उनकी भी नहीं यारों...
वो भी क्या करते,
बहुत चाहने वाले थे,
किस - किससे वफ़ा करते...

10 September 2017

1726 -1730 दिल जिंदगी दुनियाँ आँखों आँसू साथ दर्द ठोकर याद जुल्फ उलझन बात शायरी


1726
आँखोंसे आँसू न निकले,
तो दर्द बढ़ जाता हैं,
उसके साथ बिताया हुआ,
हरपल याद आता हैं.......

1727
मुझे रहने दो अब,
अपनी जुल्फोमें;
इनकी उलझने,
जिंदगीसे बहोत कम हैं...!
1728
न कहा करो हर बार,
की हम छोड़ देंगे तुमको...
न हम इतने आम हैं,
न ये तेरे बसकी बात हैं…!!!

1729
शेर-ओ-शायरी तो,
दिल बहलानेका ज़रिया हैं जनाब !
लफ़्ज़ काग़ज़पर उतरनेसे,
महबूब लौटा नहीं करते....!!

1730
दुनियाँकी हर चीज…
ठोकर लगनेसे टूट जाया करती हैं;
एक कामयाबी ही हैं,
जो ठोकर खाके ही मिलती हैं . . . !

1721 - 1725 दिल प्यार इश्क ज़िंदगी दुनियाँ एहमियत चाँद चाँदनी गिनती ज़ख्म बेहिसाब कमज़ोर शायरी


1721
चाँदकी एहमियत चाँदनी ही जाने,
सागरकी लहरोंकी एहमियत किनारा ही जाने,
आपकी ज़िंदगीमें हमारी एहमियत क्या हैं,
वो तो आपका प्यारभरा दिल ही जाने......

1722
गिनतीमें ज़रा कमज़ोर हूँ…
ज़ख्म बेहिसाब ना दिया करो…

1723
सब कुछ हासिल नहीं होता,
ज़िन्दगीमें यहाँ,
किसीका "काश" तो
किसीका "गर" छूट ही जाता हैं...

1724
उसके इंतजारके मारे हैं हम...
बस उसकी यादोंके सहारे हैं हम...
दुनियाँ जीतके करना क्या हैं अब..??
जिसे दुनियाँसे जीतना था,
आज उसीसे हारे हैं हम...

1725
मैने जान बचाके रखी हैं,
एक जानके लिए ,
इतना इश्क कैसे हो गया,
एक अनजानके लिए…!

9 September 2017

1716 - 1720 लफ्ज बरस बूँदें मौसम खैरात खुशी पसंद गम नवाब दुआ उमर बेजुबान पत्थर गहने देहलीज तरस शायरी


1716
लफ्ज जब बरसते हैं,
बूँदें बनकर . . .
मौसम कोई भी हो,
मन भीग ही जाता हैं . . . !

1717
खैरातमें मिली हुई खुशी,
हमे पसंद नहीं हैं,
क्यूँकि हम गममें भी...
नवाबकी तरह जीते हैं l

1718
तुम्हें मालूम हैं,
तुम वो दुआ हो मेरी...
जिसको उमरभर,
माँगा हैं मैंने !

1719
बेजुबान पत्थरपें लदे हैं,
करोंडोंके गहने मंदिरोमें l
उसी देहलीजपें एक रूपयेको
तरसते नन्हें हाथोंको देखा हैं ll

1720
हम उनकी ज़िन्दगीमें,
सदा अंजानसे रहे...
और वो हमारे दिलमें
कितनी शानसे रहे . . . !

7 September 2017

1711 - 1715 दिल मोहब्बत ज़िंदगी कहानी किताब बाते फितरत अदालत इंसाफ बेगुनाह चोरी मेहरबानी शायरी


1711
मोहब्बत नहीं हैं कोई किताबोंकी बाते !
समझोगे जब रोकर काटोगे रातें !
जो चोरी हो गया तो पता चला दिल था हमारा !
करते थे हम भी कभी किताबोंकी बाते !

1712
फितरतकी अदालतमें,
इंसाफ कहाँ होता हैं।
सजा उसीको मिलती हैं,
जो बेगुनाह होता हैं।।

1713
बिगड़ी हुई ज़िंदगीकी बस इतनीसी कहानी हैं;
कुछ बचपनसे ही हम लोफर थे;
बाकी कुछ आप जैसे दोस्तोंकी मेहरबानी हैं।

1714
मैं ख़ामोशी तेरे मनकी,
तू अनकहां अलफ़ाज़ मेरा…
मैं एक उलझा लम्हा,
तू रूठा हुआ हालात मेरा...!!!

1715
जिन्दगी आजकल गुजर रही हैं,
परेशानियोंके दौरसे.......
एक जख्म भरता नहीं,
दूसरा आनेकी जिद करता हैं...

6 September 2017

1706 - 1710 मोहब्बत जीवन अक्षर मौत बाज़ी बेपनाह साँस तलाशी उसूलों समझ तन्हा कैद पागल नाम अधूरी शायरी


1706
दो अक्षरकी मौत और,
तीन अक्षरके जीवनमें ...
ढाई अक्षरका दोस्त,
हमेंशा बाज़ी मार जाता हैं.......

1707
मुझे "बेपनाह मोहब्बतके सिवा कुछ नहीं आता"
चाहो तो मेरी "साँसोंकी तलाशी ले लो...!!!

1708
काश... तू समझ सकती,
मोहब्बतके उसूलोंको,
किसीकी साँसोमें समाकर,
उसे तन्हा नहीं करते ।

1709
काश कैद कर ले वो पागल,
मुझे अपनी डायरीमें,
जिसका नाम छुपा रहता हैं
मेरी हर एक शायरीमें !!!

1710
जाने क्यूँ अधूरीसी,
लगती हैं जिंदगी,
जैसे खुदको किसीके,
पास भूल आये हो...

3 September 2017

1701 - 1705 दिल मुआवज़े अर्जी ग़मकी बारिश तबाह भीतर धूप सुगंध ओढ़नी संसार पता शाम शायरी


1701
मैने भी अर्जी दे डाली हैं,
मुआवज़ेकी ,
उसके ग़मकी बारिशने,
खूब तबाह किया हैं भीतरसे मुझे...

1702
आज धूप सुगंधित हो गई,
लगता हैं...
तुम्हारी ओढ़नी सुख रही हैं ।

1703
ढूंढा सारे संसारमें,
पाया पता तेरा नहीं;
जब पता तेरा लगा,
अब पता मेरा नहीं।

1704
शाम ढले ये सोचके बैठे हम,
उनकी तस्वीरके पास l
सारी ग़ज़लें बैठी होगी,
अपने-अपने "मीर" के पास...

1705
जिससेभी दिल लगाओ,
इस दुनियाँमें सोचसमझकर लगाना ;
क्योंकि ये दुनियाँवाले, बेरहम...
सबसे पहले दिलही तोडते हैं.......