12 March 2017

1078 मुसीबत शख्सियत यार उभर झरना काम चट्टान उलझ शायरी


1078
"मुसीबतौंसे ही उभरती हैं,
शख्सियत यारों...
जो चट्टानोंसे उलझे,
वो झरना किस कामका...."

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