18 April 2017

1228 समझ दुनियाँ खुद शायरी


1228
एक मैं हूँ कि समझा नहीं,
खुदको आजतक...!
और दुनियाँ हैं कि न जाने,
मुझे क्या-क्या समझ लेती हैं...!!!

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