9 April 2017

1198 दानिस्ता ठोकर मर आगोश हवा सागर चाँदनी शायरी


1198
फिर वो दानिस्ता ठोकर खाईये,
फिर मेरी आगोशमें खो जाईये,
ये हवा, सागर ये हलकी चाँदनी,
जीमें आता हैं, यहीं मर जाईये...

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