13 April 2017

1205 मोहब्बत कश्ती सफ़र नजरे डूब शायरी हैं हीं हां में मैं पें याँ आँ हूँ हाँ हें


1205
रातकी गहराई आँखोंमें उतर आई,
कुछ ख्वाब थे और कुछ मेरी तन्हाई,
ये जो पलकोंसे बह रहे हैं हल्के हल्के,
कुछ तो मजबूरी थी कुछ तेरी बेवफाई l

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