22 April 2017

1242 महक फ़िज़ा कलआज शहर शायरी


1242
कुछ तो महक रहा था,
फ़िज़ाओंमें... कलसे...
हमें आज मालूम हूआ,
के वो मेरे शहर आये थे...

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