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राह यूँ ही नामुकम्मल,
ग़म-ए-इश्क़का फ़साना...
कभी मुझको नींद नहीं आयी,
कभी सो गया ज़माना.......
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रातोंके
बाज़ारमें,
दुकान लगा रखी
हैं यादोंने;
नींदका सारा,
कारोबार
चौपट हैं.......!
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उतर जाती हैं जो जहनमें,
तो फिर जल्दी नींद नहीं आती...
ये कॉफ़ी और तुम्हारी यादें,
एक जैसी हैं.......
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वह एक तुम,
तुम्हें
फूलोंपें भी न
आई नींद !
वह एक मैं,
मुझे कांटोंपें भी इज्तिराब
न था !!!
नैयर अकबराबाजदी
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उसको भी हमसे, मोहब्बत हो ज़रूरी तो नहीं...
इश्क़ही इश्क़की क़ीमत हो, ज़रूरी तो नहीं...
नींद तो दर्दके बिस्तरपें भी आ सकती हैं,
उनके आगोशमें सर हो ये ज़रूरी तो नहीं...
मुस्कुरानेसे भी होता हैं, ग़में-दिल बयाँ...
मुझे रोनेकी आदत हो,
ये ज़रूरी तो
नहीं...