6791
मुझसे हर बार,
मसर्रतने छुड़ाया दामन...
मुझको सौ बार दिया,
गमने सहारा.......
6792
दामन किसीका हाथसे,
जाता रहा मगर;
इक रिश्ता-ए-ख़याल
हैं,
जो टूटता नहीं...
6793
बरसात थम चुकी हैं,
मगर हर शजरके पास...
इतना तो हैं कि,
आपका दामन भिगो सके...
अहसन यूसुफ़ ज़ई
6794
हुस्नका
दामन,
फिरभी ख़ाली l
इश्क़ने
लाखों,
अश्क बिखेरे ll
सूफ़ी तबस्सुम
6795
दामन-ए-जीस्तमें,
अब कुछभी नहीं हैं बाकी...
मौत भी आयी तो,
यकीनन उसे धोखा
होगा...!