5 March 2017

1046 काँटे अंगार सुलग हँस रोने तन्हाई शायरी


1046
काँटोसी चुभती हैं तन्हाई,
अंगारोंसी सुलगती हैं तन्हाई,
कोई आकर हम दोनोंको ज़रा हँसा दे,
मैं रोता हूँ तो रोने लगती हैं तन्हाई…

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