6806
आँखकी सीपमें,
मोतीसा लरजता आँसू...
दिलके बेताब समुंदरका,
पता देता हैं.......
6807
बिछी थीं हर
तरफ़,
आँखें ही आँखें...
कोई आँसू गिरा
था,
याद होगा.......
बशीर बद्र
6808
आग दुनियाकी लगाई हुई,
बुझ जाएगी...
कोई आँसू मेरे दामनपें,
बिखर जाने दे.......
नज़ीर बाक़री
6809
अश्कोंके
टपकनेपर,
तस्दीक़
हुई उसकी;
बेशक वो नहीं
उठते,
आँखोंसे
जो गिरते हैं ll
नूह नारवी
6810
साहिबा, साजिशे तो...
चाहें जैसी रचलें l
नकली आँसू तों,
पुरानें
हों गयें ll