6561
ज़हर मिलताही नहीं,
मुझको गर वरना...
क्या क़सम हैं तेरे मिलनेकी,
कि खा भी न सकूँ.......
साहिर
6562
मोहब्बतकी
क़सम,
वो ऐसी नहीं
थी...
वो मेरी थी
मगर,
कहती नहीं थी.......
6563
बना लो उसे अपना,
जो दिलसे तुम्हे चाहता हैं l
खुदाकी क़सम ये चाहने वाले,
बड़ी मुश्किलसे मिलते हैं ll
6564
तुझे जिंदगीभर याद रखनेकी,
क़सम तो नहीं
ली;
पर एक पलके
लिए तुझे,
भुल जाना भी
मुश्किल हैं...
6565
चौदहवींका चाँद हो,
या आफ़ताब हो...!
जो भी हो तुम, खुदाकी क़सम,
लाजवाब हो.......!!!