14 August 2020

6321 - 6325 दिल समझ ज़िंदगी हिम्मत हुनर ज़ख्म शायरी

 

6321
जो दिलमें हैं,
उसे कहनेकी हिम्मत रखिए;
और जो दुसरोंके दिलमें हैं,
उसे समझनेका हुनर रखिए...!

6122
कुछज़ख्म इंसानके,
कभी नहीँ भरते...
बस इंसान उन्हें छुपानेका,
हुनर सीख जाता हैं.......!

6323
उसे ये कैसे बताताके,
कुछ तो मैं भी हूँ...
के उसने अपने हुनरसे,
कमाल हैं लिया।.......

6324
वो दौर क़रीब आ रहा हैं,
जब दाद-ए-हुनर न मिल सकेगी...
अतहर नफ़ीस

6325
ज़िंदगी कभी आसान नही होती;
इसे आसान बनाना पढ़ता है...
कुछ को नज़रअन्दाज़ करके,
कुछ को बर्दाश्त कर के हैं...

12 August 2020

6316 - 6320 दिल चमक इंतज़ार चिराग ज़िंदगी जमाना हिम्मत हुनर रौशन शायरी

 

6316
हैं चमक तेरी जबींपर,
जरा दिल भी देख जाहिद l
जो जगह हैं रौशनीके लिए,
वहीं रौशनी नहीं ll

6317
किसी रोज़ होगी रौशन,
मेरी भी ज़िंदगी...
इंतज़ार सुबहका नहीं,
किसीके लौट आनेका हैं...!

6318
चिरागसी तासीर
रखिये साहिब...
सोचिये मत कि
घर किसका रौशन हुआ !

6319
रौशन किया घरको,
तेरे आनेकी खबर सुनकर...
जमाना समझ रहा हैं,
हम दिवाली मना रहे हैं...!

6320
मैं वो चिराग हूँ,
जिसको फरोगेहस्तीमें...
करीब सुबह रौशन किया,
बुझा भी दिया.......

11 August 2020

6311 - 6315 याद महफ़ूज़ हकीकत चिराग उजाले रौशनी शायरी

 

6311
जला हैं शहर तो क्या,
कुछ कुछ तो हैं महफ़ूज़...
कहीं ग़ुबार,
कहीं रौशनी सलामत हैं...!
                        फ़ज़ा इब्नएफ़ैज़ी

6312
कारगाहे हयातमें,
यह हकीकत मुझे नजर आई...
हर उजालेमें तीरगी देखी,
हर अंधेरेमें रौशनी पाई.......!
जिगर मुरादाबादी

6313
इन्सानियतकी रौशनी,
गुम हो गई कहाँ...
साए हैं आदमीके,
मगर आदमी कहाँ.......

6314
न खिजाँमें हैं कोई तीरगी,
न बहारमें कोई रौशनी...
ये नजर-नजरके चराग हैं,
कहीं जल गये कहीं बुझ गये...
            शायर लखनवी

6315
घरसे बाहर नहीं निकला जाता,
रौशनी याद दिलाती हैं तिरी.......!
                                    फ़ुज़ैल जाफ़री

10 August 2020

6306 - 6310 ज़िन्दगी मोहब्बत वजूद ख्याल एहसास शायरी

 

6306
चलो आज फेंकते हैं एक कंकड़,
ख्यालोंके दरियामें...
कुछ खलबली तो मचे,
एहसास तो हो, के जिंदा हैं हम...

6307
वजूद शीशेका हो तो,
पत्थरोंसे मोहब्बत नही किया करते l
एहसास-ए-चाहत न मिले तो,
वजूद बिखर जाया करते हैं...ll

6308
हाथ बेशक छूट गया उसका,
मेरे हाथसे.......
एहसास उसका फंसा हैं आज भी,
उंगलियोंमें मेरी.......

6309
मुद्दतों बाद उसे किसीके साथ ख़ुश देखा,
तो ये एहसास हुआ...
काश के हमने उसे,
बहोत पहले छोड़ दिया होता.......

6310
ज़िन्दगी जीनी हैं तो,
तकलीफें तो होंगी... वरना,
मरनेके बाद तो,
जलनेका एहसास भी नहीं होता...

9 August 2020

6301 - 6305 दिल मोहब्बत ज़िन्दगी फासलें जुर्म नसीब मोहब्बत रौशनी एहसास शायरी

 

6301
रौशनी रौशनी सही,
तीरगीमें भी नूर होता हैं...
रूहे एहसास हो लतीफ तो,
हर खलिशमें सरूर मिलता हैं...

6302
एहसासोंके पांव नहीं होते l
फिर भी दिल तक,
पहुंच ही जाते हैं.......ll

6303
जो बिन कहें सून ले,
वो दिलके बेहद करीब होते हैं l
ऐसे नाज़ुक एहसास,
बड़े नसीबसे नसीब होते हैं ll

6304
इसी लिए हमें,
एहसास-ए-जुर्म हैं शायद...
अभी हमारी मोहब्बत,
नई नई हैं ना...
अफ़ज़ल ख़ान

6305
फासलोंका एहसास तब हुआ,
जब मैंने कहा ठीक हूँ और...
उसने मान लिया.......

8 August 2020

6296 - 6300 दिल ज़िन्दगी तूफां हमसफ़र मोहब्बत गम तन्हा आँख ख़्वाब वहम शायरी

 

6296
भूल जाना और भुला देना,
फ़क़त एक वहम हैं...
दिलोंसे कब निकलते हैं वो लोग,
मोहब्बत जिनसे हो जाए...!

6297
क्या जाने उसे वहम हैं,
क्या मेरी तरफ़से...
जो ख़्वाबमें भी रातको,
तन्हा नहीं आता.....
शेख़ इब्राहीम ज़ौक

6298
राहे ज़िन्दगीमें,
यह कहानी सभी की हैं;
हमराज़ कोई और हैं,
हमसफ़र कोई और हैं...

6299
आदमीको सिर्फ वहम हैं,
पास उसके ही इतना गम हैं !
पूछो हंसते हुए चेहरोंसे,
आँख भीतरसे कितनी नम हैं...!

6300
वहम था कि सारा बाग अपना हैं,
तूफांके बाद पता चला...
सूखे पत्तोंपर भी,
हक हवाओंका था.......

7 August 2020

6291 - 6295 दिल इश्क़ मोहब्बत ज़ख़्म ग़म किताब गैर नज़र मुस्कुराहट गवाह शायरी

 

6291
मिरे हबीब,
मिरी मुस्कुराहटोंपें जा;
ख़ुदा-गवाह मुझे,
आज भी तिरा ग़म हैं.......
                                अहमद राही

6292
मुझे जलानेको,
गैरोंके नज़दीक जाना तेरा...
गवाही दे गया,
तुझे इश्क़ हैं मुझसे.......

6293
चेहरा खुली किताब हैं,
पढ़ लीजिए जनाब...
हमसे हमारे ज़ख़्मोंकी,
गवाही मांगिये.......

6294
फ़लक़के चाँद तारे हैं गवाह,
तेरी नज़रका गुस्ताख़...
सरारा हर एक,
चिलमन जला रहा हैं.......

6295
ना पेशी होगी,
ना गवाह होगा...
जो भी उलझेगा मोहब्बतसे,
वो सिर्फ तबाह होगा.......

6 August 2020

6286 - 6290 दिल जान याद एहसास हिचकियाँ नेकियाँ तबाह बेगुनाही मुकर्रर गवाह शायरी


6286
मेरी हिचकियाँ गवाह हैं...
नींद उनकी भी तबाह हैं...!

6287
कुछ नेकियाँ,
ऐसी भी होनी चाहिए...
जिसका खुदके सिवा,
कोई गवाह ना हो.......!

6288
फ़क़त एक चाँद ही गवाह था,
मेरी बेगुनाहीका...
और अदालतने पेशी,
अमावसकी रात मुकर्रर कर दी...

6289
कैसे लड़ूँ मुक़दमा खुदसे,
उसकी यादोंका.......
ये दिल भी वकील उसका !
ये जान भी गवाह उसकी !!!

6290
गवाह मिलते हैं,
लाशें मिलतीं हैं;
इसलिये लोग बेख़ौफ,
एहसासोंका कत्ल करते हैं...

5 August 2020

6281 - 6285 ख़बर याद मोहब्बत एहसास हिसाब हिचकियाँ शायरी


6281
ख़बर देती हैं,
याद करता हैं कोई...
जो बाँधा हैं हिचकीने,
तार आते आते.......!

6282
तू लाख भुलाके देख मुझे,
मैं फिर भी याद आऊंगा...
तू पानी पी पीके थक जाएगी,
मैं हिचकियाँ बन बनके सताऊंगा...

6283
मुझे याद करनेसे,
ये मुद्दआ था...
निकल जाए दम,
हिचकियाँ आते आते...
                        दाग़ देहलवी

6284
अब हिचकियाँ आने लगी हैं,
कहीं मैं याद फ़रमाया गया हूँ...!
अमीर मीनाई

6285
हिसाब अपनी मोहब्बतका,
मैं क्या दूँ.......?
तुम अपनी हिचकियोंको,
बस गिनते रहना.......

4 August 2020

6276 - 6280 मोहब्बत इश्क अश्क चीनी जिंदगी ज़हर शिकवा शायरी


6276
जाने कौन सी आबे-हयात,
पी के जन्मी हैं ये मोहब्बत...
मर गये कितने हीर और रांझे,
मगर आज तक ज़िन्दा हैं ये मोहब्बत...!

6277
जिस कपमें तुमने,
एक रोज़ चाय पी थी !
उस कपमें मैं आज भी,
चीनी नहीं मिलाता !!!

6278
ज़रासी मोहब्बत क्या पी ली,
जिंदगी अबतक लड़खड़ा रही हैं.......

6279
इश्कको समझने के लिए,
उसे मीरासा होना पड़ेगा...
कभी अश्क छुपाने पड़ेंगे,
कभी ज़हर पीना पड़ेगा.......

6280
कड़वा हैं, फीका हैं,
शिकवा क्या कीजिए...
जीवन समझौता हैं,
घूँट घूँट पीजीए.......

3 August 2020

6271 - 6275 समझ उलझन कसम बहक मजबूर शायरी


6271
लड़खड़ाये कदम,
तो गिरे उनकी बाँहोंमे...
आज हमारा पीना ही,
हमारे काम गया.......!

6272
मुझे तौबाका पूरा अज्र,
मिलता हैं उसी साअत...
कोई ज़ोहरा-जबीं पीनेपें,
जब मजबूर करता हैं.......
अब्दुल हमीद अदम

6273
तर्क--मय ही,
समझ इसे नासेह l
इतनी पी हैं कि,
पी नहीं जाती ll
          शकील बदायुनी

6274
शब जो हमसे हुआ,
मुआफ़ करो;
नहीं पी थी,
बहक गए होंगे !!!
जौन एलिया

6275
अजीब उलझन हैं गालिब...
बेगम कहती हैं पीना छोडो,
तुम्हें मेरी कसम...!
यार कहते हैं,
पीना पडेगा साले,
तूझे बेगमकी कसम...!!!

2 August 2020

6266 - 6270 दिल ज़िंदगी कैद इबादत मख़मूर ख़ुश्क बात आज़ाद समझ साक़ी शायरी


6266
अज़ाँ हो रही हैं,
पिला जल्द साक़ी l
इबादत करें आज,
मख़मूर होकर ll

6267
अक्ल क्या चीज़ हैं एक वज़ाकी पाबन्दी हैं,
दिलको मुद्दत हुई इस कैदसे आज़ाद किया;
नशा पिलाके गिराना तो सबको आता हैं,
मज़ा तो जब हैं कि गिरतोंको थाम ले साकी ll
ग़ालिब

6268
वो मिले भी तो,
इक झिझकसी रही...
काश थोड़ीसी,
हम पिए होते.......!
   अब्दुल हमीद अदम

6269
ज़बान-ए-होशसे ये कुफ़्र,
सरज़द हो नहीं सकता...
मैं कैसे बिन पिए ले लूँ,
ख़ुदाका नाम ऐ साक़ी...!
अब्दुल हमीद अदम

6270
ख़ुश्क बातोंमें कहाँ हैं,
शैख़ कैफ़--ज़िंदगी...
वो तो पीकर ही मिलेगा,
जो मज़ा पीनेमें हैं.......!
                  अर्श मलसियानी

1 August 2020

6261 - 6265 जन्नत शराब तलब शब मय साक़ी शायरी


6261
कहीं सागर लबालब हैं,
कहीं खाली पियाले हैं;
यह कैसा दौर हैं साकी,
यह क्या तकसीम हैं साकी !

6262
ज़ाहिद शराब-ए-नाब हो,
या बादा-ए-तुहूर...
पीने ही पर जब आए,
हराम ओ हलाल क्या...
हफ़ीज़ जौनपुरी

6263
मयकी तौबाको तो,
मुद्दत हुई क़ाएम लेकिन...
बे-तलब अब भी जो मिल जाए,
तो इंकार नहीं.......
                            क़ाएम चाँदपुरी

6264
शबको मय ख़ूबसी पी,
सुब्हको तौबा कर ली l
रिंदके रिंद रहे,
हाथसे जन्नत न गई ll
जलील मानिकपूरी

6265
ज़ौक़ देख,
दुख़्तर--रज़को मुँह लग l
छुटती नहीं हैं मुँहसे ये,
काफ़र लगी हुई.......ll
                         शेख़ इब्राहीम ज़ौक़

31 July 2020

6256 - 6260 जन्नत ज़िंदगी होश रहमत कर्ज मय शायरी


6256
दिन रात मय-कदेमें,
गुज़रती थी ज़िंदगी...
अख़्तर वो बे-ख़ुदीके,
ज़माने किधर गए...
               अख़्तर शीरानी

6257
तेरी मस्जिदमें वाइज़,
ख़ास हैं औक़ात रहमतके...
हमारे मय-कदेमें रात दिन,
रहमत बरसती हैं.......
अमीर मीनाई

6258
मय-कदेकी तरफ़,
चला ज़ाहिद...
सुब्हका भूला,
शाम घर आया...
               कलीम आजिज़

6259
न तुम होशमें हो,
न हम होशमें हैं...
चलो मय-कदेमें,
वहीं बात होगी...!
बशीर बद्र

6260
कर्जकी पीते थे मय,
लेकिन समझते थे कि हाँ...
रंग लायेगी हमारी,
फाकामस्ती एक दिन.......
           मिर्जा गालिब

30 July 2020

6251 - 6255 सलीके एतबार ख़ौफ़ उम्र होश क़ैद बात जाम मय शायरी


6251
वाइज़ मोहतसिबका,
जमघट हैं...
मय-कदा अब तो,
मय-कदा रहा.......
                       बेखुद बदायुनी

6252
हमारा जाम खाली हैं,
तो कोई बात नहीं...
यह एतबार तो हैं,
कि मय-कदा हमारा हैं...

6253
जब मय-कदा छुटा तो,
फिर अब क्या जगहकी क़ैद;
मस्जिद हो मदरसा हो,
कोई ख़ानक़ाह हो.......
                           मिर्ज़ा ग़ालिब

6254
होश आनेका था,
जो ख़ौफ़ मुझे...
मय-कदेसे,
न उम्र भर निकला...
जलील मानिकपूरी

6255
सलीकेसे जिन्हें एक,
घूंट भी पीना नहीं आता l
वह इतने हैं कि सारे,
मय-कदेमें छाए बैठे हैं ll

29 July 2020

6246 - 6250 रूह प्यास साग़र फितरत नज्जारा सफ़र हयात राह साक़ी मय शायरी


6246
बहार आते ही टकराने लगे,
क्यूँ साग़र मीना...
बता पीर--मय-ख़ाना,
ये मय-ख़ानोंपे क्या गुज़री...
                        जगन्नाथ आज़ाद

6247
फितरतके हसीं नज्जारोंमें,
पुरकैफ खजाने और भी हैं...
मय-खाना अगर वीराँ है तो क्या,
रिन्दोंके ठीकाने और भी हैं.......
शकील बदायुनी

6248
रूह किस मस्तकी,
प्यासी गई मय-ख़ानेसे...
मय उड़ी जाती हैं,
साक़ी तिरे पैमानेसे...!
                         दाग़ देहलवी

6249
ये कह दो हज़रत-ए-नासेहसे,
गर समझाने आए हैं;
कि हम दैर ओ हरम होते हुए,
मय-ख़ाने आए हैं ll

6250
मैं मय-कदे की राहसे,
होकर निकल गया l
वर्ना सफ़र हयातका,
काफ़ी तवील था ll
            अब्दुल हमीद अदम

28 July 2020

6241 - 6245 पैमाने मयस्सर लुत्फ़ मय शायरी


6241
निकलकर दैर--काबासे,
अगर मिलता मय-ख़ाना...
तो ठुकराए हुए इंसाँ,
ख़ुदा जाने कहाँ जाते.......
                           क़तील शिफ़ाई

6242
ज़ौक़ जो मदरसेके.
बिगड़े हुए हैं मुल्ला l
उनको मय-ख़ानेमें.
ले आओ सँवर जाएँगे ll
शेख़ इब्राहीम ज़ौक़

6243
कहाँ मय-ख़ानेका दरवाज़ा ग़ालिब,
और कहाँ वाइज़...
पर इतना जानते हैं,
कल वो जाता था कि हम निकले...
                                      मिर्ज़ा ग़ालिब

6244
एक ऐसी भी तजल्ली,
आज मय-ख़ाने में हैं...
लुत्फ़ पीनेमें नहीं हैं,
बल्कि खो जाने में हैं...!
असग़र गोंडवी

6245
अब तो उतनी भी,
मयस्सर नहीं मय-ख़ानेमें...
जितनी हम छोड़ दिया करते थे,
पैमानेमें.......!!!
                                   दिवाकर राही

27 July 2020

6236 - 6240 याद बज़्म जन्नत शराब पैमाने साक़ी तरस मय शायरी


6236
मय-ख़ानेमें क्यूँ,
याद--ख़ुदा होती हैं अक्सर...
मस्जिदमें तो,
ज़िक्र--मय--मीना नहीं होता...
                              रियाज़ ख़ैराबादी

6237
ये मय-ख़ाने हैं,
बज़्म-ए-जम नहीं हैं;
यहाँ कोई किसीसे,
कम नहीं हैं...ll
जिगर मुरादाबादी

6238
मय-ख़ानेमें मज़ार,
हमारा अगर बना...!
दुनिया यही कहेगी कि,
जन्नतमें घर बना...!!!
                रियाज़ ख़ैराबादी

6239
ऐ मुसहफ़ी अब चखियो,
मज़ा ज़ोहदका...
तुमने मय-ख़ानेमें जा जाके,
बहुत पी हैं शराबें.......
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी

6240
दूरसे आए थे साक़ी,
सुनके मय-ख़ानेको हम...
बस तरसते ही चले,
अफ़्सोस पैमानेको हम...
                 नज़ीर अकबराबादी

26 July 2020

6231 - 6235 दिल आदाब दुनिया जाम अंदाज दामन पैमाने साक़ी मय शायरी


6231
पिला मय आश्कारा हमको,
किसकी साक़िया चोरी...
ख़ुदासे जब नहीं चोरी,
तो फिर बंदेसे क्या चोरी...!
                          शेख़ इब्राहीम ज़ौक़

6232
ग़र्क़ कर दे तुझको ज़ाहिद,
तेरी दुनियाको ख़राब...
कमसे कम इतनी तो,
हर मय-कश के पैमाने में हैं...!
जिगर मुरादाबादी

6233
मय-कशीके भी कुछ,
आदाब बरतना सीखो...
हाथमें अपने अगर,
जाम लिया हैं तुमने...!
                           अहमद

6234
आता हैं जज्बे-दिलको,
यह अंदाजे-मय-कशी...
रिन्दोंमें रिन्द भी रहें,
दामन भी तर न हो...
जोश मल्सियानी

6235
लोग लोगोंका खून पीते हैं,
हमने तो सिर्फ मय-कशी की हैं...!
                            नरेश कुमार शाद