6261
कहीं सागर लबालब हैं,
कहीं खाली पियाले हैं;
यह कैसा दौर हैं साकी,
यह क्या तकसीम हैं साकी !
6262
ज़ाहिद शराब-ए-नाब हो,
या बादा-ए-तुहूर...
पीने ही पर
जब आए,
हराम ओ हलाल
क्या...
हफ़ीज़ जौनपुरी
6263
मयकी तौबाको तो,
मुद्दत हुई क़ाएम लेकिन...
बे-तलब अब भी जो मिल जाए,
तो इंकार नहीं.......
क़ाएम चाँदपुरी
6264
शबको मय ख़ूबसी
पी,
सुब्हको
तौबा कर ली l
रिंदके रिंद रहे,
हाथसे जन्नत
न गई ll
जलील मानिकपूरी
6265
ऐ ज़ौक़ देख,
दुख़्तर-ए-रज़को न मुँह लग l
छुटती नहीं हैं मुँहसे ये,
काफ़र लगी हुई.......ll
शेख़ इब्राहीम ज़ौक़