6081
बहुत हैं,
कैदे-जिन्दगीमें मुतमइन होना...
चमन भी इक मुसीबत था,
कफस भी इक मुसीबत हैं.......
सीमाब अकबराबादी
6082
अगर खो गया
इक निशेमन तो
क्या गम,
मुकामाते–आहो–फुगाँ
और भी हैं;
कनाअत न कर
आलमे-रंगो–बूपर,
चमन और भी
आशियाँ और भी
हैं;
तू शाही हैं
परवाज हैं काम
तेरा,
तेरे सामने आसमाँ और
भी हैं ll
मोहम्मद
इकबाल
6083
बे-सबाती चमन-ए-दहरकी हैं,
जिनपे खुली...
हवस-ए-रंग न वो,
ख़्वाहिश-ए-बू
करते हैं...
ऐश देहलवी
ऐश देहलवी
6084
वह शाखे-गुलपें
हो,
या किसीकी मैयतपर...
चमनके फूल तो
आदी हैं,
मुस्कुरानेके
लिये.......!
6085
चमनमें इख़्तिलात-ए-रंग-ओ-बूसे,
बात बनती हैं...
हम ही हम हैं, तो क्या हम हैं...
तुम ही तुम हो, तो क्या तुम हो...
सरशार सैलानी